सब बेटे बहुओं की टोली आई है
कई बरस में ऐसी होली आई है।
हमने तो हिल-मिलकर रहना चाहा था
क्या कीजे उस पार से गोली आई है।
शहरी आपाधापी में अकसर हमको
याद गाँव की हँसी ठिठोली आई है।
जब से मेरे जीवन में तुम आए हो
खुशियों से भर मेरी डोली आई है।
सुन पोतों की बातें सोचे दादी माँ
नए दौरे में कैसी झोली आई है।
कल से मेरे इम्तहान होने को है
सगुन भरी वो माँ की रोली आई है।
ममता किरण
Friday, April 20, 2007
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