हवा डोली है मन भीगा हुआ है,
मेरी साँसों में तू महका हुआ है।
उसूलों में वो यों जकड़ा हुआ है,
कि अपने आप में सिमटा हुआ है।
नहीं जो टिक सका आँधी के आगे,
वो पत्ता शाख से टूटा हुआ है।
लिखा फिर रख दिया, जिस ख़त को हमने,
अधूरा ख़त यों ही छूटा हुआ है।
बिगाड़ा था जो तुमने रेत का घर,
घरौंदा आज तक बिखरा हुआ है।
भुलाना चाहती थी जिसको दिल से,
वो दिल में आज तक ठहरा हुआ है।
सजाए ख़्वाब जो पलकों पे हमने,
वो ख़्वाबों का महल टूटा हुआ है।
अदा से अपनी वो सबको रिझाए,
खिलौना एक घर आया हुआ है।
समूची उम्र कर दी नाम जिसके,
वही अब मुझसे बेगाना हुआ है।
ममता किरण
Friday, April 20, 2007
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