Friday, April 20, 2007

आज मंज़र थे

आज मंज़र थे कुछ पुराने से
याद वो आ गए बहाने से।

जो खुदा से मिला कुबूल रहा
कोई शिकवा नहीं ज़माने से।

बारिशों की सुहानी रातों में
गीत गाए वो कुछ पुराने से।

इतनी गहरी है जेहन में यादें
मिट न पाएगी वो मिटाने से।

बीत पतझर का अब गया मौसम
अब निकल आओ उस वीराने से।

मैं नहीं ख़्वाब हूँ हक़ीक़त हूँ
ये बता दो मेरे दीवाने से।

चाहे जितना वो रूठ ले मुझसे
मान ही जाएँगे मनाने से।

घर में आएगा जब नया बच्चा,
घर हँसेगा इसी बहाने से।

रंग तुझपे चढ़ ही आया है
फ़ायदा क्या हिना रचाने से।

ममता किरण

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